About the Book
ग्रामीण समाजशास्त्र को समाजशास्त्र की एक मुख्य शाखा के रूप में माना जाता है। इस विषय का महत्व इसलिए भी है कि देश की 70 प्रतिशत आबादी आज भी गाँवों से जुड़ी हुई है। गाँव के बारे में महात्मा गाँधी ने कहा है कि यदि हमें भारत को समृद्ध बनाना है तो पहले गाँवों को समृद्ध बनाना होगा। यदि गाँव आत्मनिर्भर होंगे तो राष्ट्र भी आत्मनिर्भर होगा। इस समृद्धि और आत्मनिर्भरता के लिए यह आवश्यक है कि गाँव की सामाजिक, आर्थिक, धर्मिक एवं राजनीतिक संरचना को समझा जाये। इस पुस्तक में उन सभी महत्वपूर्ण पहलुओं का समाजशास्त्रीय संदर्श से विश्लेषण किया गया है जो गाँव व ग्रामीण समाज के बारे में समझ विकसित कर सकें।
प्रस्तुत पुस्तक ग्राम्य जीवन की विविधताओं और एकता का विश्लेषण करती है और समाज में हो रहे परिवर्तनों, विकास योजनाओं, वैश्वीकरण व उदारीकरण के प्रभावों का विस्तार से उल्लेख करती है।
आशा है यह पुस्तक नीति निर्माताओं, ग्रामीण समाजशास्त्र के शोधार्थियों व अनुसंधानकर्ताओं के अतिरिक्त उन सामान्य पाठकों के लिए भी उपयोगी होगी जो गाँव व ग्रामीण जीवन को समझने में रुचि रखते हैं।
Contents
1 ग्रामीण समाजशास्त्र क्या है?
2 ग्रामीण समाजशास्त्र : अध्ययन के उपागम
3 ग्रामीण समाजशास्त्र : बुनियादी अवधरणाएँ
4 ग्रामीण सामाजिक संरचना
5 ग्रामीण समाज : महिलाओं की प्रस्थिति
6 ग्रामीण वृहत् धार्मिक व्यवस्था : स्थानीयकरण, सार्वभौमिकरण, संस्कृतिकरण तथा लघु एवं वृहत् परम्पराएँ
7 उत्पादन पद्धति एवं कृषक सम्बन्ध पर बहस
8 कृषक संरचना : भू-राजस्व व्यवस्था, भूमि सुधर एवं हरित क्रान्ति
9 कृषक असंतोष
10 ग्रामीण समस्याएँ
11 ग्रामीण विकास की रणनीति
12 पंचायती राज : ग्रामीण सशक्तिकरण की ओर
13 वैश्वीकरण का कृषि पर प्रभाव
About the Author / Editor
प्रकाश चन्द्र जैन, जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर में समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष रहे हैं। आप राजस्थान के विभिन्न राजकीय महाविद्यालयों में भी शिक्षण के साथ जुड़े रहे। आप की रूचि सामाजिक आन्दोलन, ग्रामीण समाज, जनजातीय समाज, सामाजिक स्तरीकरण व सामाजिक परिवर्तन से जुड़े विषयों के अनुसंधान में रही है। आपने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली, आई.सी.एस.एस.आर., नई दिल्ली, राजस्थान सरकार तथा विभिन्न संस्थानों द्वारा प्रदत्त अनुसंधान कार्य किया है। आपने अनेक पुस्तकें लिखी हैं जिनमें सोशल मूवमेन्ट अमंग ट्राइबल्स, प्लान डेवलेपमेन्ट अमंग ट्राइबल्स, ग्लोबलाइजेशन एण्ड ट्राइबल इकॉनोमी, सोशल एन्थ्रोपोलोजी, रूरल सोशियोलोजी, सामाजिक आन्दोलन का समाजशास्त्र, भारतीय समाज, इत्यादि सम्मिलित है।