About the Book
लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की दिशा में 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम बहुत ही प्रभावशाली कदम है। भारत में ग्रामीण विकास एवं स्थानीय अभिशासन में पंचायती राज संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। जनजातीय क्षेत्रों की विविधताएँ एवं विशिष्ट स्थिति को देखते हुए पंचायतों के लिए इन क्षेत्रों हेतु विशिष्ठ उपबन्ध किए गए हैं। जिसमें आजीविका, जल, जंगल एवं जमीन के प्रबन्धन में जनजातीय सहभागिता तथा विकास कार्यक्रमों की भागीदारी में पंचायतीराज संस्थाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। मनरेगा समकालीन सन्दर्भों में जनजातीय आजीविका हेतु बहुत ही महत्वपूर्ण योजना है। प्रस्तुत पुस्तक में मध्यप्रदेश के उज्जैन संभाग के जनजातीय क्षेत्रों में जीविकोपार्जन, आधारभूत अवसंरचना एवं प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन में मनरेगा और पंचायतीराज व्यवस्था के अन्तर्संबन्धों की वस्तुस्थिति को देखने का प्रयास किया गया है। साथ ही विकास प्रक्रिया में मनरेगा एवं पंचायतीराज संस्थाओं की भूमिका को सूक्ष्म स्तर पर विश्लेषित किया गया है।
यह पुस्तक शिक्षाविदों, प्रशासकों, नीति-निर्माताओं, शोधार्थियों एवं पंचायतीराज व्यवस्था तथा जनजातीय विकास से सम्बन्धित मुद्दों पर रुचि रखने वालों के लिए उपयोगी आगत सिद्ध होगी।
Contents
1 प्रस्तावना
2 अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतीराज व्यवस्था का विकास क्रम
3 अध्ययन क्षेत्र: एक परिचय
4 पंचायत प्रतिनिधियों एवं ग्रामसभा सदस्यों का सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य
5 सतत् जीविकोपार्जन, मनरेगा कार्यक्रम एवं पंचायतीराज
6 प्राकृतिक संसाधन, मनरेगा एवं पंचायतीराज
7 पंचायत प्रतिनिधियों की सहभागिता एवं जनजातीय विकास
8 ग्रामसभा सदस्यों की सहभागिता एवं जनजातीय विकास
9 निष्कर्ष एवं सुझाव
About the Author / Editor
माधव प्रसाद गुप्ता, सम्प्रति म.प्र. सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान, उज्जैन में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रदत्त पोस्ट डाॅक्टोरल फैलो (राजनीति विज्ञान) हैं। लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण एवं जनजातीय विकास आपके शोध एवं अध्ययन की रुचि के क्षेत्र हैं। आपने संस्थान द्वारा सम्पन्न पंचायतीराज एवं जनजातीय विकास से सन्दर्भित तीन शोध परियोजनाओं में शोध अध्येता के रूप में कार्य किया है। आपके इन्हीं विषयों पर शोध-पत्र विभिन्न शोध-पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में भी प्रकाशित हो चुके हैं।