About the Book
यह अपेक्षित है कि सत्य, अहिंसा, मानव समानता, सार्वभौमिक भाईचारा, विकेंद्रीकृत लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के गांधीवादी आदर्शों को 21वीं सदी में समग्र रूप से सम्पूर्ण मानवता के लिए प्रकाशस्तंभ के रूप में कार्य करना चाहिए। गाँधी संभवतः सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक थे, जिनके उपदेश 21वीं सदी की संकटग्रस्त दुनिया का मार्गदर्शन कर सकते हैं। इसी कारण यह पुस्तक 21वीं सदी में गाँधीवादी विचारों की प्रासंगिकता पर ध्यान केंद्रित करती है।
पुस्तक को एक सुस्पष्ट सम्पादकीय परिचय से आरम्भ करते हुए चार विषयक भागों - गाँधी वैचारिकी एवं सामयिकी, गाँधी का समकालीन सामाजिक सन्दर्भ, गाँधी वैकासिकी एवं पर्यावरण, तथा गाँधी की सामयिकता का विमर्श - में विभाजित किया गया है, जिनमें कुल 20 शोधपरक आलेख हैं। इस पुस्तक में गाँधी के विचारों के इर्द-गिर्द किये जा रहे वृहद् अकादमिक सृजन की अनवरत धारा में कुछ नया जोड़ने का विनम्र प्रयास है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘महात्मा गाँधी: 21वीं सदी का भारतीय एवं वैश्विक परिप्रेक्ष्य’ विषय पर आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में किये गए गंभीर बौद्धिक विमर्श के चयनित लेखों का सम्पादित संग्रह है। जो शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं, योजनाकारों, शिक्षाविदों और भारत तथा विश्व की चुनौतियों से सरोकार रखने वाले सभी लोगों के लिए अत्यधिक रुचिकर होगी।
Contents
1 परिचयात्मक: गाँधी वैचारिकी का समकालीन एवं वैश्विक परिप्रेक्ष्य —– यतीन्द्रसिंह सिसोदिया, गोपालकृष्ण शर्मा एवं आशीष भट्ट
प्रथम भाग - गाँधी वैचारिकी एवं सामयिकी
2 गाँधी: आज —– नंदकिशोर आचार्य
3 व्यक्ति को सत्याग्रह और समाज को सिविल नापफरमानी पर चलना होगा —– रघु ठाकुर
4 तृष्णा, जलवायु परिवर्तन एवं व्यक्तिवाद: गाँधीवादी विकल्प —– नरेश दाधीच
5 गाँधी की पुनर्रचना —– अनिल दत्त मिश्रा
6 बापू तुम कौन हो —– अरविन्द मोहन
द्वितीय भाग - गाँधी का समकालीन सामाजिक सन्दर्भ
7 हमें गाँधी आज कैसे याद रखना चाहिए? —– निशिकांत कोलगे
8 21वीं सदी का संदर्भ और महात्मा गाँधी: समाज, प्रजातंत्र, अर्थव्यवस्था और सेवा सम्बन्धी विचारों पर कुछ टिप्पणियाँ —– अजयप्रतापसिंह चौहान
9 गाँधी एवं समकालीन विश्व के मुद्दे —– प्रेम आनंद मिश्र
10 महात्मा गाँधी एवं समकालीन राष्ट्रीय चेतना एवं राष्ट्रवाद का विमर्श —– नीरज कुमार झा
11 आधुनिक जीवनशैली, तथाकथित विकास और गाँधी विचार —– संजय जैन
तृतीय भाग - गाँधी वैकासिकी एवं पर्यावरण
12 गाँधी दर्शन और सम्पोषित विकास —– उत्तमसिंह चौहान
13 गाँधी का आत्मबल: हरित राजनीतिक सिद्धान्त —– राजीव सक्सेना
14 पर्यावरण विमर्श की गाँधी दृष्टि —– शम्भू जोशी
15 गाँधी, आर्थिकी और बदलता वैश्विक परिदृश्य —– अनुराग चतुर्वेदी
चतुर्थ भाग - गाँधी की सामयिकता का विमर्श
16 गाँधी-अम्बेडकर: साझा सपनों के लिए रिक्त स्थान —– अजय कुमार
17 महात्मा गाँधी: करिश्मा से करिश्मा तक —– पयोद जोशी
18 भारतीय स्वतंत्राता आन्दोलन और गाँधी —– विद्याशंकर विभूति
19 महात्मा गाँधी समकालीन सन्दर्भों में: एक समीक्षा —– पुनीत कुमार एवं मंजुलता गर्ग
20 महात्मा गाँधी और परिवर्तित होती विश्व अर्थव्यवस्था —– अर्चना मेहता
About the Author / Editor
यतीन्द्रसिंह सिसोदिया, म.प्र. सामाजिक विज्ञान अनुसंधान संस्थान, उज्जैन (भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद का स्वायत्त शोध संस्थान) के निदेशक हैं। आपके अनुसंधान की प्राथमिकता के क्षेत्रों में लोकतंत्र, विकेंद्रीकृत शासन, चुनावी राजनीति, आदिवासी मुद्दे और विकासात्मक मुद्दे हैं। आपको प्रोफेसर जी. राम रेड्डी सामाजिक वैज्ञानिक पुरस्कार (2017) से सम्मानित किया गया है। आपने 24 पुस्तकों का लेखन/संपादन किया है। आप मध्य प्रदेश जर्नल ऑपफ सोशल साइंसेज और मध्य प्रदेश सामाजिक विज्ञान अनुसंधान जर्नल के संपादक हैं।
गोपालकृष्ण शर्मा राजनीति विज्ञान, लोक प्रशासन एवं मानवाधिकार अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रोेफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। प्रोपेफसर शर्मा विगत 40 वर्षों से अधिक समय से राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन-अध्यापन से जुड़े हुए हैं। आपने कौटिल्य जर्नल ऑफ पोलिटिकल साइंस का आरम्भिक वर्षों में संपादन किया।
आशीष भट्ट म.प्र. सामाजिक विज्ञान अनुसंधान संस्थान, उज्जैन (भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद का स्वायत्त शोध संस्थान) में एसोसिएट प्रोेफेसर हैं। आपके अनुसंधान की प्राथमिकता के क्षेत्रों में लोकतंत्र, विकेंद्रीकृत शासन, और आदिवासी मुद्दे हैं। आपने पांच पुस्तकों का लेखन/संपादन किया है। आप मध्य प्रदेश सामाजिक विज्ञान अनुसंधान जर्नल के सह-संपादक हैं।