About the Book
भारत में औद्योगिक विकास की गति तीव्र होने से नगरीकरण की प्रक्रिया में वृद्धि हो रही है। परिणामस्वरूप कृषि भूमि का अधिग्रहण हो रहा है। कई परिवारों को विस्थापित भी किया जाता रहा है। विस्थापन से कई संयुक्त परिवार टूट जाते हैं, सामाजिक तानाबाना प्रभावित होता है, सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रक्रियाओं के साथ-साथ धर्मिक जीवन भी प्रभावित होता है, तथा व्यवसाय भी परिवर्तित होते हैं। विस्थापन से विस्थापितों की जनांकिकीय प्रक्रियाएं प्रभावित होती है। प्रजननता, मृत्युक्रम, प्रवास, रूग्णता दर एवं विवाह दर प्रभावित होेती है। भूमि अधिग्रहण एवं विस्थापन से व्यक्ति की मानसिक क्षमता प्रभावित होती है। पर्याप्त मुआवजे के अभाव में व्यक्ति का सही पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन नहीं हो पाता है। विस्थापितों की प्रमुख समस्या पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन की है। आर्थिक अवनति के साथ-साथ उनकी मानसिक, व्यावसायिक एवं सामाजिक क्षति भी होती है।
विस्थापन, पुनर्वास की सभी समस्याएँ विकास के वर्तमान स्वरूप के संदर्भ में देखी जा सकती हैं जिसमे समाज के गरीब एवं अक्षम वर्गों की पीड़ाओं को ध्यान मे नहीं रखा गया है। परिणामस्वरूप पूरा ध्यान परियोजनाओं की आर्थिक निरंतरता पर केन्द्रित होकर रह गया है। देश मे एक सामाजिक नीति का अभाव है और पुनर्वास की नीति एवं कानून का अभाव भी इसी मानसिकता का परिचायक हैं।
प्रस्तुत शोध् में विकास, विस्थापन के साथ विस्थापन से विस्थापितों के जनांकिकीय आयामों को भी देखा गया है। इनको व्यष्टि जनांकिकी के परिप्रेक्ष्य में देखा गया है, साथ ही जनांकिकीय प्रभावों को स्पष्ट करने के लिए जनांकिकीय आयामों को व्यष्टि जनांकिकी के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक से समष्टि जनांकिकीय शोध को आगे विकसित करने में सहायता मिलेगी, जिससे नगरीय विकास एवं भूमि अधिग्रहण से विस्थापितों का समुचित पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन हो सकेगा, तथा सुनियोजित नगरीय विकास मानवीयता के साथ होगा।
Contents
1 विकास एवं विस्थापन
2 अध्ययन पद्धति
3 विस्थापित परिवारों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि
4 विस्थापन, पुनर्वास एवं मुआवजा
5 विस्थापन एवं जनांकिकीय प्रक्रियाएँ
6 विस्थापन एवं पुनर्वास: वैयक्तिक अध्ययन
7 नगरीय विकास, विस्थापन एवं जनांकिकीय प्रक्रियाएँ
About the Author / Editor
राजू सिंह वर्तमान में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में सहायक आचार्य हैं, तथा विगत दस वर्षों से इसी विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में अध्ययन-अध्यापन में संलग्न हैं।
इन्होनें मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से समाजशास्त्र में पी.एच.डी. प्राप्त की एवं सन् 2006 से 2008 तक भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) नई दिल्ली के डाॅक्ट्रल फैलो रह चुके हैं। पचास से अधिक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार, कॉन्फ्रेंसेज और वर्कशाॅप में कई शोध-पत्र प्रस्तुत तथा प्रकाशित भी किए हैं।