About the Book
भारतीय मानवशास्त्र पर यह एक महत्ती पुस्तक है। इस विषय में हिन्दी में पुस्तकों का नितान्त अभाव है और जो कुछ पुस्तकें उपलब्ध हैं, वे एकदम पारम्परिक हैं। उनका केन्द्र यूरोपीय मानवशास्त्र है। वे आदिवासियों के अनूठे रीति-रिवाज़ों का विवेचन बड़े रोमानी ढंग से तो करते हैं, लेकिन इन समूहों की जो जमीनी वास्तविकता है, उनके प्रति उदासीन हैं। मानवशास्त्र आज जिस अवस्था में भारत में लिखा गया है, या लिखा जा रहा है, मोटे रूप में अप्रासंगिक है।
लेखक इस तरह के मानवशास्त्र को खारिज़ करते हैं। वे मानवशास्त्र को व्यापक वैश्विक संदर्भ में देखते हैं। वे मानवशास्त्रीय सिद्धान्तों, यथा संरचनावाद, पूंजीवाद और संस्कृति का विश्लेषण भारतीय संस्कृति के सन्दर्भ में करते हैं। इस पुस्तक की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें भारतीय जनजातियों की स्थिति का पूर्ण विस्तार से विवरण दिया गया है। वनवासियों का जंगल, पहाड़, खेती, व्यावसायिक विविधता के साथ जो सरोकार है, उसे इसमें रेखांकित किया गया है। यह पुस्तक भौतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मानवशास्त्र को भी अपने विषय क्षेत्र में सम्मिलित करती है।
पुस्तक की व्याप्ति विशाल है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में इसकी उपयोगिता निश्चित है। साथ ही, यह सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं, शोधकर्ताओं और सामाजिक वैज्ञानिकों के लिये मार्गदर्शक है। यह मानवशास्त्र की प्रथम पुस्तक है जो सार्वभौमिकता को आदिवासियों और गाँवों के साथ जोड़ती है।
Contents
• मानवशास्त्र का पूर्वावलोकन
• मानवशास्त्र का अर्थ और परिभाषा
• मानवशास्त्र और अन्य समाज विज्ञान
• सामाजिक मानवशास्त्र का अध्ययन
• मानवशास्त्र की अध्ययन विधियाँ
• प्राइमेट (नरवानरगण)
• प्रजाति और प्रजाति वर्गीकरण
• प्रजातिवाद
• संस्कृति और समाज
• संस्कृति संवर्धन के सिद्धान्त
• सामाजिक संरचना और संरचनावाद
• आदिम अर्थव्यवस्था
• आदिम राजनीतिक व्यवस्था
• परिवार
• विवाह
• नातेदारी
• गोत्र
• जादू, धर्म और अनुष्ठान
• जनजाति किसे कहते हैं?
• जंगल और जमीन
• आदिवासी विकास की रणनीति
• आदिवासी जनसंख्या और भारत के प्रमुख आदिवासी
• आदिवासियों को संवैधानिक सुरक्षा
• आदिवासी समाज में जेण्डर समस्या
• आदिवासियों के आन्दोलन
• राष्ट्रीय आदिवासी नीति
• जनजातियाँः समस्याएँ और समाधान
• बदलता आदिवासी भारत
• सार्वभौमीकरण और आदिवासी
About the Author / Editor
एस.एल. दोषी ने मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर; महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक तथा दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय, सूरत में अध्यापन कार्य किया है। वे एक प्रतिष्ठित लेखक हैं तथा उन्होंने आदिवासियों और आधुनिकीकरण तथा उत्तर-आधुनिकीकरण पर आधिकारिक रूप से हिन्दी और अँग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखा है।