About the Book
इस पुस्तक के केन्द्र में नारी सशक्तीकरण के विविध आयाम हैं। इसमें प्राचीन काल से लेकर उत्तर-आधुनिक काल तक नारी की विभिन्न समस्याओं को खंगारने के साथ-साथ उनका वैज्ञानिक विश्लेषण भी किया गया है। आज नारी जगत में उसके अस्तित्व एवं अस्मिता को लेकर अनेक प्रश्न खड़े हुए हैं जिनका प्रस्तुत पुस्तक में उत्तर खोजने का प्रयास किया गया है।
नारी-मुक्ति आन्दोलन उन अवरोधों के विरुद्ध खड़ा है जो अनादि काल से उसे परम्परावादी रुढ़ियों के घेरे में बंदी बनाए हुए थे। प्रस्तुत पुस्तक न केवल नारी को स्वावलम्बी बनने तथा उच्च शिक्षा प्राप्त करने की प्रेरणा देती है, साथ ही उनकी समस्याओं को समझने में पाठकों को एक नई रोशनी प्रदान करती है। इधर स्त्री-विमर्श को लेकर गंभीर चर्चाएं सामने आई हैं जिसका प्रस्तुत पुस्तक में समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण करने का प्रयत्न किया गया है। इसी के साथ नारी सशक्तीकरण के सन्दर्भ में प्रथम बार मुस्लिम नारी की स्थिति का विश्लेषण किया गया है। आज दलित नारी कहां खड़ी है इसे भी स्पष्टता से रेखांकित किया गया है। अंत में, राष्ट्रीय आन्दोलन में उन बेनाम महिलाओं की भूमिका का उल्लेख किया गया है जिन्हें इतिहास में उचित स्थान नहीं दिया गया।
Contents
• इतिहास में दर्ज नारी
• ऋग्वेदकालीन समाज और महिलाएं
• मनुस्मृति में स्त्री
• नव-जागरण: नारी समाज एवं सशक्तीकरण
• स्त्री-विमर्श: स्त्री सशक्तीकरण का प्रश्न
• नारी अस्मिता: चेतना और सशक्तीकरण
• मुस्लिम समाज में नारी सशक्तीकरण
• महिला सशक्तीकरण: विभिन्न चुनौतियां
• नारीवादी विचारधारा: नारी मुक्ति, सशक्तीकरण
• राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में महिलाओं का योगदान
• लोक गीतों में नारी: समाजशास्त्रीय विश्लेषण
• दलित समाज, नारी और सशक्तीकरण
• इक्कीसवीं सदी में नारी: यथार्थ व स्वप्न
About the Author / Editor
वी.एन. सिंह ने लखनऊ विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. (समाजशास्त्र) की उपाधी प्राप्त की है। आपकी 41 पुस्तकें एवं 300 से अधिक आलेख एवं शोध-पत्र प्रकाशित हुए हैं। आप उत्तर प्रदेश समाजशास्त्रीय परिषद के संस्थापक संयुक्त मंत्री, पूर्व सदस्य, पाठ्यक्रम समिति, कानपुर विश्वविद्यालय, एवं कानपुर विश्वविद्यालय की अनेक समितियों में विशेषज्ञ रहे हैं। आप रीडर एवं अध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग, दयानन्द ब्रजेन्द्र स्वरूप पी.जी. काॅलेज, कानपुर विश्वविद्यालय भी रहे हैं।
जनमेजय सिंह कानपुर विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. (समाजशास्त्रा) की उपाधी ग्रहण करने के पश्चात् शैक्षिक कार्यों में संलिप्त रहे हैं। आप अनेक पुस्तकों के सह-लेखक भी हैं।