About the Book
समाज विज्ञान की एक प्रमुख विधा के रूप में समाजशास्त्र का अपना विशिष्ट महत्व है। मानव जिस समाज में रहता है, उस समाज में मानवीय संबंधों, क्रियाकलापों, प्रक्रियाओं, मानवीय व्यवहार, आचार-विचार आदि के कई ऐसे संदर्भ हैं, जिन्हें वैज्ञानिक आधार पर समझना आवश्यक है। सैद्धांतिक तौर पर इन्हीं संदर्भों को समाजशास्त्र का सैद्धांतिक अभिप्राय समझा जा सकता है। प्रस्तुत संकलन समाजशास्त्र के कतिपय ऐसे ही संदर्भों को सूक्ष्म रूप से समझने का प्रयास है। इस संकलन में समाजशास्त्र के कुछ मूलभूत पक्षों को सम्मिलित किया गया है जिसमें जहाँ एक ओर समाजशास्त्र का अर्थ है तो दूसरी ओर समाजशास्त्र के मूलभूत अध्येताओं और उनकी सैद्धांतिक व्याख्याओं को सम्मिलित किया गया है। किसी भी शास्त्र के स्पष्टीकरण तथा विश्लेषण की अपनी भाषा है। यह भाषा उन शब्दों से बनती है, जो उस शास्त्र के संकेत शब्द हैं। ये संकेत शब्द परिभाषित किए जाते हैं और इन्हीं परिभाषाओं के आधार पर समाजशास्त्रीय विश्लेषण किया जाता है। समाजशास्त्रीय भाषा में प्रयुक्त संकल्पनाओं को भी इस संकलन में सम्मिलित किया गया है। तीन खंडों में विभाजित इस संकलन के सभी 16 आलेखों को हिंदी के प्रसिद्ध लेखकों द्वारा लिखा गया है, जो सहज तथा सरल शब्दों में समाजशास्त्र पर अपनी विवेचनाएँ प्रस्तुत करते रहे हैं। आशा है यह संकलन पाठकों और विद्यार्थियों को समाजशास्त्र की समझ विकसित करने में सहायक होगा।
Contents
1 समाज का अध्ययन / टी.बी. बोटोमोर
2 समाजशास्त्र क्या है? / एस.एल. दोषी एवं पी.सी. जैन
3 समाजशास्त्र का उदय एवं समाजशास्त्रीय विचारों का विकास / बी.पी. बडोला
4 समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य / एस.एल. शर्मा
5 मानव और संस्कृति / श्यामाचरण दुबे
6 प्रस्थिति एवं भूमिका / एस.एल. दोषी एवं पी.सी. जैन
7 सामाजिक क्रिया : अर्थ, परिभाषा एवं सिद्धान्त / सी.एल. शर्मा
8 समाज / नरेंद्र कुमार सिंघी और वसुधाकर गोस्वामी
9 संस्था एवं समिति / पी.सी. जैन
10 सामाजिक क्रिया के तत्त्व / किंग्सले डेविस
11 सामाजिक समूह / रॉबर्ट बियरस्टीड
12 सामाजिक नियंत्रण : औपचारिक एवं अनौपचारिक साधन / राम आहूजा
13 समाजशास्त्रीय सिद्धान्त / टी.बी. बोटोमोर
14 संघर्ष का सिद्धान्त / एन.के. सिंघी
15 उत्तर-आधुनिकता दशा / एस.एल. दोषी
16 वैश्वीकरण : अवधारणात्मक पृष्ठभूमि / नरेश भार्गव
About the Author / Editor
नरेश भार्गव, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में तीन दशकों से अधिक कार्य। राजस्थान समाजशास्त्र परिषद् की पत्रिका के पूर्व संपादक। सामाजिक आन्दोलन, नागर समाज, जाति व्यवस्था, राजस्थान की सामाजिक व्यवस्था और राजनीतिक समाजशास्त्र आपके शोध के विशेष क्षेत्र रहे हैं। वर्तमान में जनबोध संस्थान, उदयपुर के अध्यक्ष।
वेददान सुधीर, विद्या भवन रूरल इंस्टिट्यूट, उदयपुर के राजनीतिक विज्ञान विभाग में पूर्व प्राध्यापक। भारत के संविधान और राजनीतिक व्यवस्था पर शोध। ‘मूल प्रश्न’ पत्रिका के संस्थापक संपादक। वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के ‘अनुवाद पहल’ कार्यक्रम में योगदान दे रहे हैं।
अरुण चतुर्वेदी, कॉलेज शिक्षा निदेशालय (राजस्थान सरकार), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन और मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के राजनीति विज्ञान विभाग में प्राध्यापक। सुखाड़िया विश्वविद्यालय के सामाजिक और मानविकी महाविद्यालय तथा विधि महाविद्यालय के पूर्व अधिष्ठाता। भारतीय विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय कानून, राजनीतिक चिंतन और भारतीय राजनीतिक व्यवस्था उनके शोध और लेखन के विशेष क्षेत्र रहे हैं। वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के ‘अनुवाद पहल’ कार्यक्रम में योगदान दे रहे हैं।
संजय लोढ़ा, कॉलेज शिक्षा निदेशालय (राजस्थान सरकार) और मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के राजनीति विज्ञान विभाग में प्राध्यापक व सामाजिक और मानविकी महाविद्यालय तथा स्नातकोत्तर अध्ययन विभाग के पूर्व अधिष्ठाता। आप दो दशकों से अधिक समय से दिल्ली स्थित विकासशील समाज अध्ययन केंद्र के लोकनीति नेटवर्क से जुड़े हुए हैं। लोकतान्त्रिक विकेंद्रीकरण, मतदान अध्ययन, अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध और राजस्थान की राजनीति उनके शोध और लेखन के विशेष क्षेत्र रहे हैं। वर्तमान में अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के ‘अनुवाद पहल’ कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं।