लोकतंत्र के सैद्धान्तिक और अवधारणात्मक आधार (Loktantra Ke Saiddhantik aur Avadharanatmak Siddhant) (Reader-1)

सम्पादन : हृदय कान्त दीवान | संजय लोढ़ा | अरुण चतुर्वेदी | मनोज राजगुरु (Hriday Kant Dewan, Sanjay Lodha, Arun Chaturvedi, Manoj Rajguru)

लोकतंत्र के सैद्धान्तिक और अवधारणात्मक आधार (Loktantra Ke Saiddhantik aur Avadharanatmak Siddhant) (Reader-1)

सम्पादन : हृदय कान्त दीवान | संजय लोढ़ा | अरुण चतुर्वेदी | मनोज राजगुरु (Hriday Kant Dewan, Sanjay Lodha, Arun Chaturvedi, Manoj Rajguru)

-15%446
MRP: ₹525
  • ISBN 9788131614426
  • Publication Year 2025
  • Pages 272
  • Binding Paperback
  • Sale Territory World

About the Book

आज के संदर्भ में लोकतंत्र की धारणा एक अहम विमर्श के मुद्दे के रूप में उभरी है। हर तरफ यह प्रतीत होता है मानो लोकतंत्र की धारणा को लेकर न सिर्फ विचार स्तर पर वरन् व्यवहार स्तर पर भी अलग-अलग धाराओं में विश्लेषण हो रहा है। इस विश्लेषण को समझने के लिए जहां कुछ स्थानीय परिस्थितियों को समझना होगा वहीं कुछ विशिष्ट मसलों पर गहराई से सोचना होगा।
यह पहला संकलन ‘लोकतंत्र के सैद्धांतिक व अवधारणात्मक आधार’ पर केन्द्रित है। शासन के एक प्रकार के रूप में लोकतंत्र सुनने में जितना सहज प्रतीत होता है, इसके यथार्थ व स्वरूप को समझने का प्रयास उतना ही जटिल और व्यापक है। लोकतंत्र का अर्थ काल, देश और परिस्थितियों के अनुरूप नए आयाम प्राप्त करता रहता है। इस संकलन में लोकतंत्र के विभिन्न संदर्भों को लेकर कुल 27 लेख चार अलग-अलग खण्डों में सम्मिलित किए गए हैं। जहां पहले खण्ड में लोकतंत्र के सैद्धांतिक विश्लेषण को प्रस्तुत किया गया है, वहीं दूसरा खण्ड लोकतंत्र पर विभिन्न विचारकों के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है। तीसरे खण्ड में भारतीय लोकतंत्र के आधारों की व्याख्या करते हुए लेख सम्मिलित हैं। अंत में चौथा खण्ड भारतीय लोकतंत्र के संबंध में कुछ व्याख्याओं को संबोधित करता है। अतः लोकतंत्र को सैद्धान्तिक अथवा व्यवहारिक आधारों पर समझने के लिए स्थानीय परिस्थितियों के परिवर्तनशील स्वरूप को ध्यान में रखकर ही चलना होगा। यह संग्रह भारतीय लोकतंत्र पर उपयोगी विमर्श आरम्भ करेगा और इस संकलन की यह कोशिश भी है कि पाठकों को हिन्दी में श्रेष्ठ साहित्य उपलब्ध कराने की दिशा में आगे बढ़ा जाए।


Contents

प्रथम खण्ड लोकतंत्र: एक सैद्धान्तिक विश्लेषण
1 प्रजातंत्र के सैद्धान्तिक सरोकार-हृदय कान्त दीवान
2 जनतंत्र और जनवाद के बीच कुछ सैद्धान्तिक सवाल-आदित्य निगम
3 सहमति, अनुपालन और विद्रोह: धर्म, समुदाय और लोकतंत्र-शरद बेहर
4 लोकतंत्र और धन शक्ति-कमल नयन काबरा
5 विमर्शीय प्रजातंत्र: प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का आधुनिक स्वरूप-नरेश दाधीच
6 लोकतंत्र: रूप, सिद्धान्त, सोच और सवाल-हृदय कान्त दीवान
7 उपभोक्तावाद और लोकतंत्र-सच्चिदानन्द सिन्हा
8 जनतंत्र से उपजी निराशा और अवतारी पुरुषों की खोज-प्रभात पटनायक
9 राजनीतिक दल क्यों अस्तित्व में हैं: विष्लेषणात्मक दृष्टि-नाथन यनाई
10 विश्व में लोकतंत्र का भविष्य-किषन पटनायक
द्वितीय खण्ड  लोकतंत्र: प्रमुख विचारक
11 मैक़्फर्सन का लोकतांत्रिक सिद्धान्त-माइकल क्लार्क एवं रिक टिल्मैन
12 हेबरमास और लोकतांत्रिक सिद्धान्त-जोसेफ एल. स्टास
13 ग्राम्षी: प्राधान्य का सिद्धान्त-थामस आरबेट्स
14 उदारवाद की समुदायवादी आलोचना-माइकल वाल्ज़र
15 फूको: शक्ति की अवधारणा -नाथन विडर
16 राबर्ट नॉज़िक: अराजकता, राज्य व स्वप्नलोक-जेम्स कोलमैन, बोरिस फ्रैंकल और डेरेक एल. फिलिप्स
17 गाँधी एवं हेबरमास-लॉयड रुडोल्फ एवं सुज़न रुडोल्फ
तृतीय खण्ड  भारतीय लोकतंत्र के आधार
18 दर्पण नहीं, दीपक है भारतीय संविधान -पुरुषोत्तम अग्रवाल
19 मानव-अधिकार सिद्धान्त के मूल तत्व -अमर्त्य सेन
20 राजनीतिक दल: गैर-बराबरी के नए रूप-नरेष भार्गव
21 लोकतंत्र और षिक्षाः कुछ फुटकर विचार-रोहित धनकर
22 एक नई राजनीति की कल्पना-योगेन्द्र यादव
चतुर्थ खण्ड  भारतीय लोकतंत्र: व्याख्याएँ
23 भारत को लोकतंत्र का एक नया शास्त्र गढ़ना होगा-योगेन्द्र यादव
24 लोकतंत्र और उदारतावादः दो अनूठे मॉडल और एक भारतीय विमर्ष-अभय कुमार दुबे
25 भारतीय लोकतंत्र एवं गाँधीय दृष्टि-आषा कौषिक
26 डॉ. अम्बेडकर और भारतीय लोकतंत्र का भविष्य-ज्यां द्रेज
27 राष्ट्रवाद पर बहस: लोकतांत्रिक संवाद का संकट-आषा कौषिक


About the Author / Editor

हृदय कान्त दीवान शिक्षा व समाज के अंतर्संबंध के क्षेत्र मे कार्यरत हैं। वे एकलव्य फाउंडेशन (मध्य प्रदेश) के संस्थापक सदस्य थे और विद्या भवन सोसायटी (राजस्थान) और अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय (बेंगलूरु) के साथ काम कर चुके हैं। वे शिक्षा प्रणाली में सामग्री और कार्यक्रमों के विकास और शिक्षा में अनुसंधान में सक्रिय हैं। संजय लोढ़ा, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त आचार्य। वर्तमान में जयपुर स्थित विकास अध्ययन संस्थान में भारतीय सामाजिक विज्ञान शोध परिषद् के वरिष्ठ फैलो के रूप में संबद्ध। अरुण चतुर्वेदी, वरिष्ठ राजनीति शास्त्री एवं मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त आचार्य। मनोज राजगुरु, विद्या भवन रूरल इंस्टीट्यूट, उदयपुर में राजनीति विज्ञान के सह आचार्य।


Your Cart

Your cart is empty.