मुख्य समाजशास्त्रीय विचारक: पाश्चात्य एवं भारतीय चिन्तक (MUKHYA SAMAJSHASHTRIYA VICHARAK: Key Social Thinkers – Western and Indian) Hindi

एस.एल. दोषी और पी.सी. जैन (S.L. Doshi and P.C. Jain)

मुख्य समाजशास्त्रीय विचारक: पाश्चात्य एवं भारतीय चिन्तक (MUKHYA SAMAJSHASHTRIYA VICHARAK: Key Social Thinkers – Western and Indian) Hindi

एस.एल. दोषी और पी.सी. जैन (S.L. Doshi and P.C. Jain)

-15%1016
MRP: ₹1195
  • ISBN 9788131609811
  • Publication Year 2018
  • Pages 412
  • Binding Hardback
  • Sale Territory World

About the Book

समाजशास्त्र के विकास का इतिहास लगभग 175 वर्ष पुराना है, जिसमें अनेक समाजशास्त्रियों का योगदान रहा है। अगस्त कॉम्ट, हरबर्ट स्पेन्सर, कार्ल मार्क्स, मैक्स वेबर, इमाइल दुर्खीम, विलफ्रेडो पेरेटो, एवं पितरिम सोरोकिन ऐसे विदेशी समाजशास्त्री थे जिन्होंने मानव समाज को समझने हेतु विभिन्न सिद्धान्त प्रस्तुत किये।
इसी कड़ी में भारत में भी ऐसे कालजयी चिन्तक हुए जिन्होंने भारतीय समाज को समझने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय समाजशास्त्रीयों ने संस्कृतिकरण, प्रभु जाति, संयुक्त परिवार इत्यादि पर गहन अध्ययन किया। प्रस्तुत पुस्तक में राधाकमल मुकर्जी, डी. पी. मुखर्जी और जी. एस. घुर्ये के प्रमुख योगदानों व अध्ययनों को भी सम्मिलित किया है।
यह पुस्तक उन छात्रों व शोधार्थियों के लिये उपयोगी होगी जो वैश्विक समाज के साथ-साथ भारतीय समाज को भी समझने में रुचि रखते हैं। आशा है, यह पुस्तक स्नातक एवं स्नात्कोत्तर छात्रों के लिये अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी।


Contents

1.   ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)
2.   अगस्ट कॉम्ट (Auguste Comte, 1798–1857)
3.   हरबर्ट स्पेन्सर (Herbert Spencer, 1820–1903)
4.   कार्ल मार्क्स (Karl Marx, 1818–1883)
5.   मैक्स वेबर (Max Weber, 1864–1920)
6.   इमाइल दुर्खीम (Emile Durkheim, 1858–1917)
7.   विलफ्रेडो पेरेटो (Vilfredo Pareto, 1848–1923)
8.   पितरिम सोरोकिन (Pitirim Sorokin, 1889–1968)
9.   राधाकमल मुकर्जी (Radhakamal Mukerjee, 1889–1968)
10. डी.पी. मुकर्जी (D.P. Mukerji, 1894–1961)
11. जी.एस. घुर्ये (G.S. Ghurye, 1893–1983)


About the Author / Editor

एस. एल. दोषी समाजशास्त्र के एक स्थापित लेखक हैं। आपने मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर; महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक तथा साऊथ गुजरात विश्वविद्यालय, सूरत में अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान कार्य किया है। आपके द्वारा आदिवासियों पर किए गए शोध कार्य से सम्बन्धित अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं। आपने समाजशास्त्रीय सैद्धांतिक जटिलताओं को भारतीय उदाहरणों के माध्यम से सरल भाषा में प्रस्तुत किया है।
पी. सी. जैन जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर के समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष रहे हैं और राजस्थान के सरकारी महाविद्यालयों में भी अध्यापन से जुड़े रहे हैं। आपके सामाजिक आन्दोलन, सामाजिक स्तरीकरण ओर सामाजिक परिवर्तन से सम्बन्धित अनेक लेख एवं पुस्तकें प्रकाशित हैं।


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