About the Book
यह पुस्तक ग्रामीण भारत में परिवर्तन की प्रक्रियाओं एवं उदीयमान प्रवृत्तियों पर कुछ अग्रणी एवं उभरते विद्वानों के शोध अध्ययनों तथा सैद्धांतिक विश्लेषणों का संग्रह है। ग्रामीण-नगरीय अन्तर्क्रियाओं ने ग्राम्य जगत में परिवर्तन की नवीन प्रक्रियाओं को जन्म दिया है। प्रस्तुत पुस्तक न केवल ग्रामीण-नगरीय अंतर्क्रिया के विभिन्न पहलुओं को विश्लेषित करती है, बल्कि ग्रामीण गतिशीलता एवं परिवर्तन के नए आयामों की व्याख्या किसान लामबंदी, जाति, व्यवसाय, लैंगिक असमानता और शिक्षा के सन्दर्भ में भी करती है। साथ ही यह पुस्तक ग्रामीण अध्ययन की उदीयमान प्रवृत्तियों और संकल्पनाओं को भी उजागार करती है। प्रस्तुत संकलन विधार्थियों, शोधकर्ताओं, नीति-निर्माताओं, एवं विद्वानों के लिए प्रासंगिक तथा उपयोगी होगा।
Contents
भाग 1
ग्राम्य-नगर अंतर्क्रिया: बृजराज चौहान की अध्ययन पद्धति एवं परिप्रेक्ष्य के विशेष संदर्भ में
1 भारत में ग्रामीण समाजषास्त्र एवं ब्रजराज चौहान: एक समानुभूतिक दृष्टि
आभा चौहान
2 ग्राम्य अध्ययनों की पद्धति संबंधित कुछ प्रयोग: एक समीक्षा
जगदीश कुमार पुंडीर
3 भारत में ग्रामीण समाजषास्त्र: एक आकलन
जयकांत तिवारी एवं मनीष तिवारी
4 ग्राम्य समाज की अध्ययन पद्धति: समसामयिक प्रसंग एवं व्याख्यात्मक महत्व
श्रुति तांबे
भाग 2
ग्राम्य-नगर ग्रंथन: समुदाय, वर्ग एवं लामबंदी के उभरते स्वरूप
5 पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गद्दी समुदाय में निरंतरता एवं परिवर्तन के आयाम
परवेज अहमद अब्बासी
6 उत्तर भारत के एक गाँव में जाति, वर्ग एवं कृषक सम्बन्ध
अरविन्द चौहान
7 भारत में किसान लामबंदी: वर्ग, नृजातीयता एवं राष्ट्रीयता के अंतर्विभाजक पक्ष
देबल के. सिंहराय
भाग 3
ग्राम्य-नगर अंतर्क्रिया: उदीयमान प्रवृत्तियां
8 ग्राम्य-नगर अंतर्क्रिया एवं नगर सीमांत स्थित गाँवों में परिवर्तन की उभरती प्रवृत्तियां
जया पाण्डेय
9 अर्द्ध-शताब्दी पश्चात मोहाना: नगर के एक छोर का गाँव
सत्या मिश्रा एवं राम राजन द्विवेदी
10 नगर सीमांत ग्रामों में भूस्वामित्व की बदलती प्रकृति एवं स्त्रियों में सामाजिक गतिशीलता
सुप्रिया सिंह
11 महानगर सीमांत ग्राम में जाति एवं व्यावसायिक गतिशीलता
सुप्रिया चतुर्वेदी
12 ग्रामीण शिक्षा के परिवर्नशील आयाम: नगरीय सम्पर्क के विशेष संदर्भ में
अमरपाल सिंह
13 नया मीडिया एवं ग्रामीण भारत: निरंतरता एवं परिवर्तन के स्वरूप
विनय सिंह चौहान
14 नगरीय निर्भरता के अनछुए आयाम: ग्रामीण वृद्धों के स्वास्थ्य एवं आश्रय का विश्लेषण
नीतू बत्रा
15 ग्राम-नगर पारस्परिक संबद्धता
राजेश मिश्रा
About the Author / Editor
राजेश मिश्रा जे. के. इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन रिलेशंस एंड सोशियोलॉजी के निदेशक और लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ में समाजशास्त्र के प्रोफेसर रहे हैं। वह प्रतिष्ठित लखनऊ स्कूल ऑफ सोशियोलॉजी का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष और इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी के पूर्व सचिव हैं। वह एक लोकप्रिय अध्यापक रहे हैं, अपने कौशल और समर्पण से विधार्थियों की एक पीढ़ी को प्रेरित किया है। उन्होंने चार दशकों से अधिक समय तक भारत के साथ-साथ विदेशों में भी विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया या व्याख्यान दिए हैं। वह सामाजिक सिद्धांत, सामाजिक आंदोलनों के समाजशास्त्र, सामाजिक स्तरीकरण और राजनीतिक समाजशास्त्र के क्षेत्र में विशेषज्ञ माने जाते हैं।
सुप्रिया सिंह ने लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग से एम.फिल, पी.एचडी. की है। वह लखनऊ के खुन-खुन जी पी.जी. कॉलेज में सहायक प्रोफेसर हैं। वह ग्राम्य समाज की एक उभरती अध्येता हैं। वह कैम्ब्रिज स्कॉलर्स पब्लिशिंग, ;यू केद्ध की संपादकीय सलाहकार बोर्ड की सदस्य हैं। उनकी रुचि व प्रकाशन के क्षेत्रों में ग्रामीण विकास, सामाजिक गतिशीलता, किसानों के मुद्दे, सामाजिक असमानता और भारतीय गांवों में लैंगिक मुद्दे शामिल हैं।