About the Book
मातृभाषा हिन्दी में तो क्या, अंग्रेजी सहित भारत की किसी भी भाषा में
परिवार, विवाह और नातेदारी संबंधों के सर्वांगीण एवं समसामयिक विवेचन का
सर्वथा अभाव रहा है। डा. शोभिता जैन द्वारा मौलिक रूप से लिखी गई यह पुस्तक
इस कमी को पूरा करने का प्रथम प्रयास है। यह एक सुगम पाठ्य पुस्तक तो है
ही, साथ में इसे विचारपूर्ण समन्वय, सारग्रंथों के अधुनातन निष्कर्षों और
स्पष्ट एवं सटीक भाषा में निरूपित दृष्टान्तों की त्रिवेणी भी कहा जा सकता
है। जहाँ एक ओर पितृवंशीय परिवार, विवाह एवं नातेदारी की समग्र व्याख्या की
गई है, वहीं दूसरी ओर भारत के दक्षिण.पश्चिमी एवं उत्तर.पूर्वीय अंचलों
में मातृवंशीय परम्पराओं का दिग्दर्शन इस खूबी के साथ किया गया है कि पूरे
भारत का समाजशास्त्रीय मानचित्र स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आ जाता है।
भारतीय समाज की मूलभूत इकाईयों के माध्यम से विविधता में एकता का ऐसा विवरण
व विवेचन इस पुस्तक से पहले हिन्दी में उपलब्ध ही नहीं था। यह ग्रंथ
विद्यार्थियों, अध्यापकों और अध्येताओं के समक्ष न सिर्फ नई सामग्री
प्रस्तुत करता है, बल्कि बदलते समाज में नये प्रतिमानों एवं मूल्यों के
कीर्तिमान भी अंकित करता है। नातेदारी के समाजशास्त्र की तकनीकी शब्दावली
और अवधारणाओं को इसमें आरेखों एवं परिशिष्टों की मदद से सहज, सरल और पठनीय
कर दिया गया है। वर्तमान बौद्धिक परिवेश में जहाँ मातृभाषा हिन्दी
अभूतपूर्व नये आयामों से सज्जित है वहीं प्रस्तुत कृति के बारे में यह कहा
जाना अतिशयोक्ति न होगी कि अपने विषय में यह अंतर्राष्ट्रीय मानकों में
परखी जायेगी और खरी उतरेगी। प्रस्तुत द्वितीय संस्करण के एक विशेष अध्याय
में भारतीय मुस्लिम समाज के विवाह एवं नातेदारी का विवेचन किया गया है।
Contents
1 प्रस्तावनाः क्या, क्यों, कैसे और कहाँ
भाग एक : पितृवंशीय विवाह, परिवार और नातेदारी
2 विवाह और परिवार संबंधों का ताना-बानाः उत्तर भारत
3 परिवार और विवाह संबंधों का ताना-बानाः दक्षिण भारत
भाग दो : मातृवंशीय परिवार, विवाह और नातेदारी4 मातृवंशीय परिवार और विवाह की छविः दक्षिण-पश्चिम भारत में केरल के नायर
5 मातृवंशीय परिवार और विवाह की छविः दक्षिण-पश्चिम तटीय लक्षद्वीप वेफ मुस्लिम
6 भारत के उत्तर-पूर्व अंचल में परिवार और विवाहः मातृवंशीय गारो
7 भारत के उत्तर-पूर्व अंचल में परिवार और विवाहः मातृवंशीय खासी
8 भारत के मुस्लिम समाजगत परिवार, विवाह एवं नातेदारी व्यवस्थाओं के विविध् रूपों की छवि
9 बदलते परिवेश में नए प्रतिमानों एवं मूल्यों के कीर्तिमानः उपसंहार
परिशिष्ट
1 परिवार, विवाह और नातेदारी की व्याख्या में प्रयुक्त कुछ तकनीकी शब्द और उनके अर्थ
2 हिंदी नातेदारी शब्दावली
3 मेओ नातेदारी शब्दावली
4 पुस्तक में प्रयुक्त अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों की सूची
5 समाजशास्त्राीय/नृशास्त्राीय तकनीकी शब्द संग्रह
6 मानचित्र में दिए समूह/स्थान नाम (पुस्तक में चर्चित कुछ मुख्य नाम)
About the Author / Editor
शोभिता जैन ने प्राचीन भारतीय इतिहास में उच्च शिक्षा लखनऊ
विश्वविद्यालय से और सामाजिक मानवशास्त्र में डिप्लोमा और एम.लिट्. की
उपाधियाँ ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय से प्राप्त कीं। जवाहरलाल नेहरू
विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र संस्थान से पी.एच.डी. करने के बाद इन्होंने
1982.83 में इंडियन सोशल इंस्टिट्युट में महिला विकास कार्यक्रम के निदेशक
के रूप में कार्य किया। इसके अतिरिक्त सुश्री जैन ने आस्ट्रेलिया,
इंग्लैण्ड, वेस्ट इंडीज व दक्षिण अफ्रीका मे अध्यापन और गवेषण के पदों पर
काम किया। संयुक्त राष्ट्र संघ की एफ.ए.ओ. शाखा ने इन्हें गुजरात में
कृषिवानिकी के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए शोध परामर्शदाता नियुक्त किया
और उसके बाद वे नई दिल्ली के मल्टिपल एक्शन रिसर्च ग्रुप (मार्ग) की मुख्य
परामर्शदाता रहीं। संप्रति इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के
समाजशास्त्र विभाग से अवकाश प्राप्त प्रोफेसर पद पर कार्यरत हैं। डा. जैन
के कई शोध.लेख अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में
प्रकाशित हुए हैं। आपने भिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखी है जिनमें ‘सेक्सुअल
इक्वालिटी’ (1988), और ‘केस स्टडीज ऑफ फार्म फॉरेस्ट्री एंड वेस्टलैंड
डेवेलपमेन्ट इन गुजरात’ (1988) मुख्य हैं। आपकी सम्पादित पुस्तकें ‘वुमन
प्लान्टेशन वर्कर: इन्टरनेशनल एक्सपिरीऐन्स’ (1988) और ‘एडवरसिटी टू
एडवानटेज: द सागा ऑफ पुपिल ऑफ इण्डियन ऑरिजिन इन साउथ अफ्रीका’ भी प्रकाशित
हुई हैं।