About the Book
प्रस्तुत पुस्तक पाठकों को अति संक्षेप में सामाजिक विचारकों के जीवन एवं कृतित्व के बारे में परिचित करवाने का एक लघु, किन्तु परिश्रम साध्य प्रयास है। इस पुस्तक में समाजशास्त्रीय चिन्तकों और सिद्धान्तकारों के अतिरिक्त अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, मानवशास्त्र और इतिहास के कुछ मूर्धन्य लेखकों एवं विचारकों को भी सम्मिलित किया गया है जिन्होंने समाजशास्त्र और इसकी विषय-वस्तु (समाज, सामाजिक संरचना, सामाजिक व्यवस्था, सामाजिक प्रक्रियाएं और सामाजिक मानदंड आदि) को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है।
इस पुस्तक की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि इसमें प्रथम बार पश्चिमी विचारकों के साथ-साथ प्राच्य एवं अरब देश के विचारकों जैसे मनु, कौटिल्य, इब्न खादून आदि को भी उपयुक्त स्थान दिया गया है।
यह पुस्तक एक सामान्य पाठक के साथ-साथ समाजशास्त्र की उच्च कक्षाओं के विद्यार्थियों और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रतियोगियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर लिखी गई है। इस नये संस्करण में प्रतियोगी परीक्षाओं और उच्च कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में हुए परिवर्तनों के संदर्भ में कुछ नये सामाजिक विश्लेषकों जैसे अम्बेडकर, हार्डिमैन, बोस, सुरजीत सिन्हा आदि के अध्ययनों को जोड़ा गया है। इनके अतिरिक्त कतिपय अन्य सामाजिक विचारकों (मिखाइल बख़्तीन, नोम चोमस्की आदि) पर भी लेख लिखे गये हैं। यही नहीं, कुछेक चिन्तकों (जैसे अलेक्जैन्डर, गिडेन्स, अल्थ्यूजर, हेबरमॉ, मार्क्स, मॉस, श्रीनिवास आदि) के लेखों की सामग्री में आवश्यक वृद्धि करते हुए उनका नये ढंग से पुनर्लेखन किया गया है। प्रारम्भ में दी गई चिन्तकों की नामानुक्रमणिका में उन चिन्तकों के नामों को बड़े अक्षरों में दिया गया है जिनका अध्ययन विभिन्न परीक्षाओं के पाठ्यक्रमों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
Contents
About the Author / Editor
चार दशक से भी अधिक समय से समाजशास्त्र के अध्ययन-अध्यापन से जुड़े प्रो. हरिकृष्ण रावत ने अपने शैक्षिक जीवन का समारम्भ महाराजा कालेज, जयपुर से तब किया जब राजस्थान के गिने-चुने महाविद्यालयों में समाजशास्त्र विषय पढ़ाया जाता था। कुछ वर्षों के बाद इनका स्थानान्तरण राजस्थान के समाजशास्त्र विषय के प्रणेता महाविद्यालय, सनातन धर्म राजकीय महाविद्यालय, ब्यावर में हो गया, जहाँ उन्होंने एक लम्बे अर्से तक स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं में अध्यापन एवं शिक्षण द्वारा इस विषय का गहन अनुभव बटोरा। बाद में उपाचार्य और प्राचार्य पदों पर एक दीर्घ समय तक कार्य करते हुए 1992 में सेवानिवृत हुए।
प्रो. रावत के कई समाजशास्त्र-विषयक लेख शैक्षणिक पत्रिकाओं एवं समाचार-पत्रों आदि में समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं। आपने समाजशास्त्र विश्वकोश के अतिरिक्त मानवशास्त्र विश्वकोश, मानवशास्त्रीय विचारक और स्नातक कक्षाओं के लिये सामाजिक शोध विषय पर भी पुस्तकें लिखी हैं तथा समाजशास्त्र के विविध आयामों पर कुछ अन्य पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य है।