About the Book
भारतीय समाजशास्त्री जो आज भारत का अध्ययन कर रहे हैं, किन्हीं भी अर्थों
में पश्चिमी समाजशास्त्रियों से कम नहीं है। दोनों ही भारतीय समझ के लिये
समान सिद्धांतों तथा पद्धतियों का प्रयोग कर रहे हैं।
पुस्तक उन
परिप्रेक्ष्यों से संबंधित है जो भारतीय समाज को समझने के लिये आवश्यक है।
इन सारे परिप्रेक्ष्यों को भारत के सामाजिक वैज्ञानिकों ने ही विकसित किया
है। भारतीय समाज काफी समय से उद्विकासीय प्रक्रिया में रहा है। राजवंशीय,
सामंतवाद, उपनिवेशवाद और आज का प्रजातंत्र सभी कुछ लंबे इतिहास के हिस्से
रहे हैं। अधिकृत रूप में भारतीय समाज आज बहुलता, प्रजातंत्रीय, तकनीकी,
औद्योगिक तथा पूंजीवादी समाज है। शायद इस समाज को समझने के लिये ऐसे
परिप्रेक्ष्यों की एक संरचना की आवश्यकता है।
प्रस्तुत पुस्तक भारतीय
समाज का वैज्ञानिक तथा मानवीय विश्लेषण करती है। लेखक ने वृहद स्तर पर
भारतीय समाजशास्त्रियों तथा विद्वानों जैसे- डी.डी. कोसाम्बी, रोमिला थापर,
राधाकमल मुकर्जी, जी.एस. घुर्ये, इरावती कर्वे, एम.एन. श्रीनिवास, एस.सी.
दुबे, डी.पी. मुकर्जी, ए.आर. देसाई, रामकृष्ण मुखर्जी, आंद्रे बेते,
योगेन्द्र सिंह, एन.के. बोस, सुरजीत सिन्हा, बी.आर. अम्बेडकर और रणजीत गुहा
के विचारों को संजोया है। कुछ विदेशी समाजशास्त्री जैसे लुई ड्यूमा, मैकिम
मेरियट तथा डेविड हार्ड़ीमेन को भी इन विद्वानों में सम्मिलित किया गया है।
पुस्तक अलग-अलग परिप्रेक्ष्यों की चर्चा करती है, इनमें ऐतिहासिक,
भारतशास्त्र, संरचरनात्मक-प्रकार्यात्मक, ऐतिहासिक-द्वंद्वात्मक,
सांस्कृतिक, सभ्यतात्मक और अधीनस्थ समूह परिप्रेक्ष्य सम्मिलित हैं। पुस्तक
में वर्तमान विमर्श पर भी चर्चा की गई है।
आखिरी अध्याय में वैश्वीकरण
की चर्चा की गई है। शिक्षा का निजीकरण और विज्ञान तथा टेक्नोलाॅजी के
संदर्भ भी इसमें शामिल हैं। शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं शोधकर्ताओं के
लिये यह पुस्तक अति महत्वपूर्ण साबित होगी।
Contents
1 भारत में समाजशास्त्र का विकास (
Development of Sociology in India)I ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य2 डी.डी. कोसाम्बी (
Historical Perspective)
3 रोमिला थापर (
Indological/Textual Perspective)II भारतशास्त्र/ग्रंथ परिप्रेक्ष्य4 राधाकमल मुकर्जी
5 जी.एस. घुर्ये
6 लुई ड्यूमा
7 इरावती कर्वे
III संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक परिप्रेक्ष्य (
Structural-Functional Perspective)8 एम.एन. श्रीनिवास
9 एस.सी. दुबे
10 मैकिम मेरियट
IV मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य (
Marxist Perspective)11 डी.पी. मुकर्जी
12 ए.आर. देसाई
13 रामकृष्ण मुखर्जी
V संस्तरणात्मक परिप्रेक्ष्य (
Stratification Perspective)14 आंद्रे बेते
VI सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य (C
ultural Perspective)15 योगेन्द्र सिंह
VII सभ्यतात्मक परिप्रेक्ष्य (
Civilizational Perspective)16 एन.के. बोस
17 सुरजीत सिन्हा
VIII अधीनस्थ समूह परिप्रेक्ष्य (
Subaltern Perspective)18 बी.आर. अम्बेडकर
19 रणजीत गुहा
20 डेविड हार्डीमेन
IX वर्तमान विमर्श (
Contemporary Discourses)21 संदर्भीकरण (
Contextualization)
22 देशीकरण (
Indigenization)23 भारतीय समाज के विश्लेषण में देशी श्रेणियों का प्रयोग (
Use of Native Categories in the Analysis of
Indian Society)
24 भारत में समाजशास्त्र (
Sociology in India)
X वैश्वीकरण की चुनौतियाँ (
Challenges of Globalization)
25 वैश्वीकरण तथा शिक्षा का निजीकरण (
Globalization and Privatization of Education)
26 भारत में विज्ञान और तकनीक नीति (
Science and Technology Policies in India)
About the Author / Editor
बी.के. नागला, प्रख्यात समाजशास्त्रीय विश्लेषक, महर्षि दयानन्द
विश्वविद्यालय, रोहतक में प्रोफेसर रहे हैं। आपने एम.एस. विश्वविद्यालय,
बड़ौदा तथा नेशनल इन्स्टीट्यूट आॅफ क्रिमिनोलाॅजी एंड फाॅरेन्सिक साइंस, नई
दिल्ली में अध्यापन भी किया है। सेवानिवृत्ति के पश्चात् आप कोटा खुला
विश्वविद्यालय, कोटा तथा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बाबू जगजीवनराम
पीठ में प्रोफेसर पद पर कार्यरत रहे हैं। आपने देश और विदेश के अनेक
विश्वविद्यालयों में आपने व्याख्यान दिए हैं। देश-विदेश की कई पत्रिकाओं
में आपके लेख प्रकाशित हुए हैं। अपराधशास्त्र में आपके योगदान के लिये
अंतरराष्ट्रीय समाजशास्त्रीय परिषद् ने आपको सम्मानित किया तथा राजस्थान
समाजशास्त्रा परिषद् ने जीवन उपलब्धि सम्मान से नवाजा है।