आधुनिकता, उत्तर-आधुनिकता एवं नव-समाजशास्त्रीय सिद्धान्त (ADHUNIKTA, UTTAR-ADHUNIKTA AIVAM NAV-SAMAJSHASTRIYA SIDHANT – Modernity, Post-Modernity and Neo-Sociological Theories) – Hindi

S.L. Doshi

आधुनिकता, उत्तर-आधुनिकता एवं नव-समाजशास्त्रीय सिद्धान्त (ADHUNIKTA, UTTAR-ADHUNIKTA AIVAM NAV-SAMAJSHASTRIYA SIDHANT – Modernity, Post-Modernity and Neo-Sociological Theories) – Hindi

S.L. Doshi

-15%1016
MRP: ₹1195
  • ISBN 8170337437
  • Publication Year 2002
  • Pages 478
  • Binding Hardback
  • Sale Territory World

About the Book

आधुनिकता, उत्तर-आधुनिकता और इनसे जुड़ी हुई अवधारणाएं आज के समाज विज्ञान में काफी लोकप्रिय हैं। आये दिन महान वृतान्तों, विखण्डन और तकनीकी ज्ञान की चर्चा करना सामान्य बात है। इससे आगे फूको, दरिद्रा, बोड्रिलार्ड, ल्योटार्ड आदि पर विचार-विमर्श करना भी एक लोकप्रिय प्रवृति है। इधर यूरोप और अमेरिका में ज्ञान की नई विधा के बारे में सामान्य तथा विशिष्ट ज्ञान बिखरा पड़ा है। इन देशों में किसी भी घटना के विश्लेषण में उत्तर-आधुनिकता का संदर्भ देना आम बात है। हमारे देश में भी इन नई अवधारणाओं और उत्तर-आधुनिक सिद्धान्तों ने एक बहस को जन्म दिया हैः क्या भारत भी आधुनिकता के दौर से निकलकर उत्तर-आधुनिक समाज की ओर जा रहा है? क्या यहाँ भी परम्परागत महान वृतान्तों को अस्वीकार्य कर दिया जायेगा?
विदेशों में समाजशास्त्र ने एक और पलटा खाया है। वहाँ जब आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकता ने प्रकार्यवाद और मार्क्सवाद पर हमला किया तब यह लगा कि इन सिद्धान्तों की भी पुनर्खोज होनी चाहिये। इसके परिणामस्वरूप वहाँ उत्तर-संरचनावाद, संरचनाकरण, नव-प्रकार्यवाद एवं नव-मार्क्सवाद उभरकर आये। इन तथाकथित, प्रतिष्ठित समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों को बदलते हुए समाज के विश्लेषण के लिये प्रासंगिक बनाने में विचारक जुटे हुए हैं। वैश्वीकरण ने सिद्धान्तों की इस सम्पूर्ण संरचना की लगाम अपने हाथ में ले ली है। सोवियत संघ केे विघटन ने तो मार्क्सवादी विचारधारा और मार्क्सवाद को खतरे के छोर पर ला खड़ा कर दिया है। अब चर्चा हो रही है कि समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों का कोई अस्तित्व नहीं रहा, उनका स्थान तो सामाजिक सिद्धान्त ले रहे हैं। यह सम्पूर्ण स्थिति भयावह हैं।
हिन्दी का समाजशास्त्र का भंडार समृद्ध है। लेकिन आधुनिकता, उत्तर-आधुनिकता और नव-समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों के क्षेत्र में अभी हम अपूर्ण हैं। प्रस्तुत पुस्तक इस अपूर्णता को एक सीमा तक दूर करने का एक विनम्र प्रयास है। इस लेखन की उपयोगिता समाजशास्त्र के अध्यापकों, विद्यार्थियों, प्रतियोगी परीक्षाओं के आशार्थियों तथा सामान्य पाठकों के लिये निर्बाध है।


Contents

 आधुनिकता क्या है
 आधुनिकता के सिद्धान्त
 भारतीय परम्पराओं का आधुनिकीकरण
 उद्योगवाद से उत्तर-उद्योगवाद तक और उसके पार
 उत्तर-आधुनिकता दशा
 भारतीय समाज में उत्तर-आधुनिक स्थितियाँ
 ज्यां बोड्रिलार्डः आधुनिक समाज में उग्र टूटन
 मिशेल फूकोः शक्ति और ज्ञान का विमर्श
 जाँ-फ्रेकोज़ ल्योटार्डः महान वृतान्त की मृत्यु
 जाॅक् दरिदाः विखण्डन
 फेड्रिक जेमेसनः पूंजीवाद का नया सांस्कृतिक तर्क
 वैश्वीकरणः वैश्वीय समाज की ओर
 संरचनावाद और उत्तर-संरचनावादः सामाजिक सिद्धान्त का आविर्भाव
 नव-प्रकार्यवादः प्रकार्यात्मक समाजशास्त्र की खोज और पुनर्निर्माण
 संरचनाकरण का सिद्धान्तः एन्थोनी गिडेन्स
 फ्रेंकफर्ट स्कूलः समाज का आलोचनात्मक सिद्धान्त
 नव-माक्र्सवादी सिद्धान्तः हेबरमाॅ और अल्थ्यूज़र


About the Author / Editor

शम्भू लाल दोषी ने साऊथ गुजरात विश्वविद्यालय, सूरत, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर तथा महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक में अध्यापन कार्य किया है। आपने अध्यापन के अतिरिक्त पर्याप्त अनुसंधान कार्य भी किया है। साथ ही सामाजिक परिवर्तन, स्तरीकरण तथा आदिम समाजों पर अधिकृत रूप से लिखा है। आपके कई अनुसंधान मोनोग्राफ भी प्रकाशित हुए हैं।


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