About the Book
लगभग डेढ़ शताब्दी पूर्व तक मानव समाज संबंधी ज्ञान के विषय में यह धरणा प्रचलित थी कि यह स्व-स्पष्ट है और इसके बारे में नये सिरे से गवेषणा की कोई आवश्यकता नहीं है। किन्तु, जब से ज्ञान अर्जित करने की नई विधा ‘विज्ञान’ का जन्म हुआ है, तब से यह अनुभव किया जाने लगा है कि विज्ञान का प्रयोग प्राकृतिक जगत की भांति सामाजिक जगत के अध्ययन में भी किया जाना चाहिये। ‘विज्ञान’ एक विशिष्ट प्रकार के ज्ञान का नाम है जिसके संकलन में कुछ ऐसी पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है जो आनुभविक (Empirical) और वस्तुपरक (Objective) होती हैं और इनसे प्राप्त ज्ञान को प्रामाणिक, सटीक और विश्वसनीय माना जाता है। यह ज्ञान समाज के बारे में रोज़मर्रा के सामान्य ज्ञान (Common Sense) और कभी-कभी प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध ज्ञान से भिन्न होता है।
सभी विज्ञानों - भौतिक एवं सामाजिक - के अध्ययन की अपनी-अपनी पद्धतियां, तकनीकें और उपकरण (Tools) हैं जो उनकी विषय-वस्तु के अनुरूप होते हैं। सामाजिक विज्ञानों के अध्ययन की विषय-वस्तु स्वयं मानव और उसका समाज है। वे कौनसी पद्धतियां और प्रविधियाँ हैं जिनका प्रयोग सामाजिक विज्ञानों, विशेषतः समाजशास्त्र, में किया जा रहा है, उन्हीं का वर्णन-विश्लेषण इस पुस्तक में किया गया है। यद्यपि सामाजिक अनुसंधन (Social Research) विषय पर हिन्दी में अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं, किन्तु यह पुस्तक अपने-आप में विशिष्ट है।
यह पुस्तक विशेष रूप से सामाजिक जीवन के किसी भी क्षेत्र में शोध करने में रुचि रखने वालों के लिये उपयोगी सिद्ध होगी क्योंकि इसमें शोध के उपकरणों, यथा प्रश्नावली, अनुसूची और निर्देशिका आदि का मात्र वर्णन ही नहीं किया गया है, अपितु उनके व्यावहारिक उदाहरण भी दिये गये हैं।
Contents
भाग 1 - ज्ञान के स्रोत• विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति
• वैज्ञानिक सामाजिक शोध/अनुसंधान
• सामाजिक शोध के मूल तत्वः पद्धतिविज्ञान, अवधारणाएं, संक्रियाकरण और चर/परिवर्त्य
• तथ्य और सिद्धान्त
• पैराडाइम, माॅडल एवं सिद्धान्त
भाग 2 - सामाजिक शोध की व्यूह-रचना• दत्तों/आंकड़ों के प्रकार एवं स्रोत
• शोध अभिकल्प/प्रारूप
• प्राक्कल्पना/उपकल्पना
• प्रतिचयन विधि
भाग 3 - सामाजिक शोध की विधियां, प्रविधियां एवं उपकरण• सर्वेक्षण शोध
• प्रकरण/वैयक्तिक अध्ययन शोध
• अवलोकन/प्रेक्षण शोध
• साक्षात्कार शोध
• सामाजिक शोध के उपकरणः प्रश्नावली, साक्षात्कार अनुसूची तथा साक्षात्कार निर्देशिका
• अन्तर्वस्तु विश्लेषण शोध
• प्रक्षेपी शोध
• प्रयोगात्मक शोध
• प्र्रमापन तथा पैमाना प्रविधियाँ
भाग 4 - तथ्यों का संसाधिकरण• तथ्यों का विश्लेषण एवं प्रतिवेदन लेखन
• परिमाणन और सांख्यिकी का प्रयोग
About the Author / Editor
चार दशक से भी अधिक समय से समाजशास्त्र के अध्ययन-अध्यापन से जुड़े हरिकृष्ण रावत ने अपने शैक्षिक जीवन का समारम्भ महाराजा कालेज, जयपुर से तब किया जब राजस्थान के गिने-चुने महाविद्यालयों में ही समाजशास्त्र विषय पढ़ाया जाता था। कुछ वर्षों पश्चात इनका स्थानान्तरण राजस्थान के समाजशास्त्र विषय के प्रणेता महाविद्यालय, सनतान धर्म राजकीय महाविद्यालय, ब्यावर में हो गया, जहाँ उन्होंने एक लम्बे अर्से तक स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं में अध्यापन एवं शिक्षण द्वारा इस विषय का गहन अनुभव प्राप्त किया। तत्पश्चात् उपाचार्य और प्राचार्य पदों पर एक लम्बे समय तक कार्य करते हुए 1992 में सेवानिवृत हुए।
प्रोफेसर रावत के कई समाजशास्त्र-विषयक लेख शैक्षणिक पत्रिकाओं एवं समाचार-पत्रों आदि में समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं। आपकी विभिन्न पुस्तकें, विशेषकर समाजशास्त्र विश्वकोश, मानवशास्त्र विश्वकोश, सामाजिक चिन्तक एवं सिद्धांतकार तथा मानवशास्त्रीय विचारक, की सर्वत्र सराहना हुई है तथा इन्हें मूल-पाठ (text) तथा सन्दर्भ ग्रन्थों के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।